एक नजर में : हिन्दू विवाह अधिनियम
हि न्दू विवाह अधिनियम 1955 उन सभी लोगों पर लागू होता है, जो धर्मत: हिन्दू, जैन, बौध्द और सिख हों। या वह सभी व्यक्ति जो हिन्दू विधि से संचालित होते हैं। हिन्दू उसे माना जाता है, जिसके माता-पिता दोनों ही एक धर्मत: हिन्दू, बौध्द, जैन या सिक्ख हों। धर्म परिवर्तन करके हिन्दू बनने वाले व्यक्ति पर भी यह अधिनियम लागू होता है।
अन्य शहरों की स्थिति
दिल्ली महिला आयोग के आंकड़ों के अनुसार इस महानगर में हर साल करीब 1 लाख 30 हजार शादियां होती हैं और दस हजार तलाक होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में तलाक लेने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। इस बात का अंदाजा सिर्फ इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि दिल्ली की विभिन्न पारिवारिक अदालतों में हर वर्ष दस हजार से अधिक तलाक की अर्जियां डाली जाती हैं। आंकड़ों के मुताबिक, मुम्बई में 4000 और बंगलुरू में 5000 अर्जियां दाखिल की जाती हैं। यहां तक की देश के सबसे शिक्षित प्रदेश केरल में भी पिछले दस वर्षों में तलाक के मामलों में 350 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पंजाब व हरियाणा में पिछले एक दशक में 150 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं अगर पारिवारिक अदालतों के न्यायाधीशों की बात करें तो 1960 में न्यायाधीशों के पास एक से दो मामले आते थे। 1980 में यह बढ़कर 100 से 200 तक हो गया, 1990 में यह आंकड़ा 1000 तक पहुंच गया। अब यह बढ़कर 9000 तक पहुंच गया है।
तलाक के 9 आधार
व्यभिचार
क्रूरता
परित्याग
धर्म परिवर्तन
पागल
कुष्ठ रोग
छूत की बीमारी वाले यौन रोग
संन्यास
सात साल से जीवित होने की खबर न हो
विधि आयोग की सिफारिशें
अप्रैल, 1978 विधि आयोग की 71वीं रिपोर्ट में कहा गया कि 'इरिट्रिवेएबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज' यानी शादी के टूट चुके रिश्ते के दोबारा जुड़ने की संभावना न होना भी तलाक का एक आधार माना जाए।
कानून में संशोधन कर हिन्दू मैरिज एक्ट में धारा 13 सी जोड़ने की सिफारिश की गई। मार्च 2009 विधि आयोग की 217वीं रिपोर्ट में भी 'इरिट्रिवेएबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज' को तलाक का आधार बनाए जाने की सिफारिश की गई।
सुप्रीमकोर्ट के अहम फैसले
जॉर्डन डाइंगडेह बनाम एसएस चोपड़ा
नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली
समर घोष बनाम जया घो
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