आपराधिक मामलों में पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने के निर्देश कानून के बावजूद आपराधिक मामलों में पीड़ितों को भुला देने और उन्हें हुए नुकसान व पीड़ा का मुआवजा नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता और अफसोस जताया है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को निर्देश दिया है कि वे प्रत्येक आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने पर विचार करें।

आपराधिक मामलों में पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने के निर्देश

कानून के बावजूद आपराधिक मामलों में पीड़ितों को भुला देने और उन्हें हुए नुकसान व पीड़ा का मुआवजा नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता और अफसोस जताया है। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को निर्देश दिया है कि वे प्रत्येक आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने पर विचार करें। मुआवजे के पहलू पर विचार करना अदालतों के लिए कानूनन अनिवार्य है। इतना ही नहीं अदालतें मुआवजा देने या न देने का कारण भी आदेश में दर्ज करें।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला महाराष्ट्र में हत्या के एक मामले में सुनाया है।
मामले में दोषी अंकुश शिवाजी गायकवाड़ को सत्र अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसे हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था। अपराध पीड़ितों के हित में यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और सुधा मिश्र की पीठ ने अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-357 की व्याख्या करते हुए सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की प्रति उच्च न्यायालयों को भेजने का आदेश भी दिया है, ताकि आपराधिक मामलों की सुनवाई कर रहे देश भर के न्यायाधीशों को इस आदेश की जानकारी मिल सके।
कोर्ट ने कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देने का कानून इसलिए बनाया गया, ताकि पीड़ित को यह न लगे कि उसे भुला दिया गया है। पीठ ने कहा कि अगर सीआरपीसी की धारा-357 में अदालतें आपराधिक मामलों में मुआवजे के पहलू पर विचार करने का दायित्व नहीं निभाएंगी, तो इस कानून को बनाने का उद्देश्य ही निष्फल हो जाएगा।
फैसले में कहा गया है कि न सिर्फ अदालतों का कर्तव्य है कि वे प्रत्येक आपराधिक मामले में मुआवजे के पहलू पर विचार करें, बल्कि वे फैसले में यह भी बताएं भी कि इस पर विचार किया गया है। किसी मामले में मुआवजा दिया जाए या न दिया जाए यह तय करना कोर्ट का विवेकाधिकार है, लेकिन इस पर विचार करना उसके लिए अनिवार्य है। मुआवजे का मुद्दा तय करने के लिए जरूरी है कि अदालतों के समक्ष इस बारे में सामग्री हो, जिसका आकलन कर वे निष्कर्ष पर पहुंच सकें।
इस बात में कोई विवाद नहीं है कि मुआवजे का मुद्दा अभियुक्त को दोषी ठहराने के बाद ही आता है। दोषी की मुआवजा अदा करने की क्षमता भी महत्वपूर्ण पहलू होगा। अदालत को सजा और मुआवजे पर फैसला देने से पहले इस बारे में पड़ताल भी करनी पड़ेगी। मुआवजे की राशि प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति और पीड़ित की क्षमता पर निर्भर करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने के देश और विदेश में मौजूद कानूनों का विस्तृत वर्णन किया है। अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में इस बावत किए गए संशोधन को भी फैसले में दर्ज किया गया है। कोर्ट ने हत्या के मामले को घोर लापरवाही में तब्दील करते हुए दोषी अंकुश गायकवाड़ की उम्रकैद को घटाकर पांच साल कैद कर दिया है

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